सोचते तो हम भी थे आज तक
कि ख़ुदा ही भला करता है
और ख़ुदा ही बुरा करता है
और हर अच्छे-बुरे का हिसाब
ख़ुदा ही रखा करता है ।
पर अब अहसास हुआ है यह
कि ख़ुदा नहीं, बंदा ही हिसाब रखता है ।
हर जन्म अपने पर हुए ज़ुल्मों की
क़ीमत वसूलता है,
और दूसरों के अहसानो की
क़ीमत चुकाता है ।
यह इंसान ही है जो यह कर्मों का सिलसिला
शुरू से अंत तक चलाता है ।
यह इंसान ही है जो ख़ुद कर्मों के बंधन में बंद
दूसरों को भी बांधता चला जाता है ।