निकल जाते हैं तेज़ी से कारवाँ ज़िन्दगी के
और पीछे उड़ती धूल मेरे लिए छोड़ जाते हैं ।
कभी कुछ लोग हाथ खींचके मेरा
कर लेते हैं सवार अपने कारवाँ में दो पल को
फिर कुछ दूरी में धक्का देके मुझको
वे अपने रास्ते चले जाते हैं ।
निकल जाते हैं तेज़ी से कारवाँ ज़िन्दगी के
और पीछे उड़ती धूल मेरे लिए छोड़ जाते हैं ।
अब तो है तुझसे यही गुज़ारिश कि ऐ कारवान-ए-ज़िन्दगी–
तू बख़्श दे इस नाचीज़ को, इसे पड़े रहने दे यहाँ गुमनाम ।
तेरे सपने तेरी आरज़ुओं से अब इसे न कोई वास्ता न कोई काम ।
तू मिलने दे इसे खाक में, बढ़ जा आगे बेपरवाह ।
तुझ पर सवार होने वाले तो आगे और भी मिल जाएँगे ।
क्या पता तू जब आएगा वापस यहाँ लौटके
शायद यहाँ का मंज़र ही बदला हुआ पाए ?
कई सफ़र ज़िन्दगी के
पैरों से तय नहीं किए जाते ।
ऐ कारवान-ए-ज़िन्दगी, तू बख़्श दे इस नाचीज़ को,
तुझ पर सवार होने वाले तो आगे और भी मिल जाएँगे ।
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