भूल जाते हैं मुझको सब बेपरवाह
पर मैं ख़ुद को भुला नहीं पाती ।
मुझे छोड़ पीछे, निकल जाता है ज़माना,
पर मैं ख़ुद को पीछे छोड़ नहीं पाती ।
ख़ुद से ख़दी के अहसास को हटाऊँ तो कैसे ?
भूल जाते हैं मुझको सब बेपरवाह
पर मैं ख़ुद को भुला नहीं पाती ।
मुझे छोड़ पीछे, निकल जाता है ज़माना,
पर मैं ख़ुद को पीछे छोड़ नहीं पाती ।
ख़ुद से ख़दी के अहसास को हटाऊँ तो कैसे ?
गुज़र जाते हैं सारे रास्ते सब राह,
मैं उनमें कुछ जुदा नहीं पाती।
चाहिए फ़कत एक मुझको अफ़साना,
मैं ये चाहत छोड़ नहीं पाती।
चाहतों की उलझनों से खुद को बचाऊँ तो कैसे?
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बहुत ख़ूब !
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