कुछ तो बात थी उस मुलाक़ात में वरना,
रातों की नींदें यूँही उड़ा नहीं करतीं,
वे कुछ कहें न कहें, कहने की ज़रूरत ही कहाँ ?
अगर बात कहने पर आ जाती तो यह मोहब्बत ही क्या होती !
साथ गुज़ारा यह चन्द लम्हों का वक़्त
इस ज़िन्दगी के मायने बदलने के काबिल हो गया ।
अगर दिल की बात होठों तक भी आ जाती तो–
यह ज़िन्दगी हमसे आशना न रहती ।
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