जाओ दुनिया के काफ़िले से जाके कह दो
यह मुसाफ़िर घड़ी दो-घड़ी रुक जाना चाहता है ।
है सफ़र से थक गया यह तन
है दौड़ से ऊब गया यह मन
मिलेगा इस रूह को नहीं सुकून गर–
यूँही चलता रहा यह सफ़र पूरे जीवन ।
घड़ी भर थमके अब यह मन
चेतना की धारा में बहना चाहता है —
जाओ, दुनिया के काफ़िले से जाके कह दो
यह मुसाफ़िर घड़ी दो घड़ी रुक जाना चाहता है ।
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