प्रेम एक ऊर्जा है,
प्रेम एक भाव है,
प्रेम है असीम–
यह सारे बंधनों का अभाव है ।
यह प्रेम ही तो है जो जगत के कण-कण में धड़कता है,
और प्रेम ही समय के क्षण-क्षण में बरसता है,
है प्रकृति यह सारी चलायमान प्रेम से–
वह प्रेम ही तो है जो चाँद-तारों में चमकता है ।
प्रेम की भाषा को
ये आँखें बोलती हैं,
और दिल समझता है ।
प्रेम की भाषा को भला
मुख से कौन बोलता है ?
अगर प्रेम की अभिव्कक्ति शब्दों में होती है
तो कागज़ के पन्नों पर एक कविता जन्म लेती है ।
प्रेम है शाश्वत,
प्रेम कभी मरता नहीं,
प्रेम करने वाले गुज़र जाते हैं लेकिन,
प्रेम-चक्र कभी रुकता नहीं ।
हैं प्रमी लाखों करोड़ों इस जगत में,
पर प्रेम-लहर है एक जो उनमें बहा करती है ।
जो करते हैं प्रेम उनके दिल जानते हैं
कि प्रेम की ऊर्जा से ही यह सृष्टि बना-बिगड़ा करती है ।
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