महबूब क्या चाहते हैं
यह तो पता नहीं हमें,
पर अगर पता भी होता तो,
चाहकर भी हम क्या कर लेते ?
हालातों के क़ैदी हैं हम,
अपनी ही करनी में बंद हैं,
हम जैसे पर-कटे पंछी
कभी आज़ाद नहीं हुआ करते ।
महबूब क्या चाहते हैं
यह तो पता नहीं हमें,
पर अगर पता भी होता तो,
चाहकर भी हम क्या कर लेते ?
हालातों के क़ैदी हैं हम,
अपनी ही करनी में बंद हैं,
हम जैसे पर-कटे पंछी
कभी आज़ाद नहीं हुआ करते ।
Beautiful poetry….
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Thanks!
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Nice
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Thanks!
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Nice!
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अतिसुंदर रचना।
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