दिल की ज़मीन पे फिर
बहार आते-आते रुक गई ।
निकल तो आईं थीं मोहब्बत की कलियाँ इस दिल पे
पर वे फूल न बन सकीं
और उनकी भीनी-भीनी ख़ुशबू हम तक
पहुँचते-पहुँचते रुक गई ।
दिल की ज़मीन में फिर
बहार आते-आते रुक गई ।
सोचा था हमने भी कि वे दिन आएँगे लौटके
जब फ़ोन को कानों से चिपकाए
हम भी घंटों बातें करते जाएँगे
पर फ़ोन उनका आया नहीं
हम इंतज़ार करते-करते थक गए
और दिल की ज़मीन में फिर
मोहब्बत के फूल खिलते-खिलते रह गए ।
सोचा था हमने भी कि उनके आने से
रौशन हो जाएँगे दिन हमारी ज़िन्दगी के
पर बढ़ी न आगे सोच से बात
और यूँ सोचते-सोचते महीने कट गए
फिर दिल की ज़मीन पे हमारी
मोहब्बत के फूल खिलते-खिलते रह गए ।
सोचा था हमने भी कि एक दिन
ज़िन्दगी में हमारी भी ख़ुशी का सबब आएगा
उनको आता देख हमारे चहरे का नूर
पूरे जहान को रौशन कर जाएगा
पर वे आए न हमारे पास
न जाने कितने चिराग़ जल-जल के बुझ गए
और दिल की ज़मीन में मोहब्बत के फूल
खिलते-खिलते रह गए ।
सोचा था हमने भी कि मोहब्बत की कशिश में
जुड़ जाएँगे धागे दिल के दिल से
और खींच लाएँगे उनको हमारी बाहों में
पहुँचा देंगे हमको हमारी मंज़िल पे
पर जुड़ न पाए हम उनके दिल से
और अब मोहब्बत में उलझे अपने दिल के धागे
हम सुलझाते-सुलझाते थक गए ।
दिल की ज़मीन पे हमारी
मोहब्बत के फूल खिलते-खिलते रह गए
उनकी ख़ुशबू उठते-उठते रुक गई
मोहब्बत की हवाएँ चलते-चलते थम गईं
और फिर दिल की ज़मीन पे
बहार आते-आते रुक गई ।
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