अहसासों की उम्र होती है बहुत छोटी–
पलभर के लिए उठते हैं और ओझल हो जाते हैं,
कहते तो हैं हम कि मरते दम तक करेंगे मोहब्बत
पर हर मोहब्बत के बाद अपने अहसासों के साथ ही मर जाते हैं ।
अहसासों की उम्र होती है बहुत छोटी
पर इनके दम पर हम फ़ैसले बड़े कर जाते हैं
और फिर मुर्दा अहसासों को दिल में दफ़नाए
एक क़ब्रिस्तान की ज़िन्दगी जिए चले जाते हैं ।
अहसासों की उम्र होती है बहुत छोटी
फिर भी मोहब्बत को दिल में बिठाकर ख़्वाबों की लड़ियाँ सजाए चले जाते हैं
पर यही लड़ियाँ बन जाएँगी बेड़ियाँ एक दिन
यह जानकर भी हम अनजान बने जाते हैं ।
अहसासों की उम्र होती है बहुत छोटी
पर फिर ये अहसास ही तो हैं जो इंसान को इंसान बनाते हैं
अहसासों के बिना यह ज़िन्दगी है बेरंग–
गुलों के बिना तो गुलज़ार कहाँ बन पाते हैं ।
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