ज़रूर फूटी क़िस्मत लेकर आए होंगे हम इस दुनिया में
जहाँ-जहाँ सुख की चाह की वहाँ दुख ही दुख नसीब हुआ ।
अब लगता है कि अपनी क़िस्मत को मुसकुराकर तसलीम करने की अदा
हमें भी धीरे-धीरे आ ही जाएगी एक दिन–
जब इतना कुछ सिखा दिया है ज़िन्दगी ने
तो यह सबक़ भी शायद दूर नहीं ।
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