कभी वे हमसे, कभी हम उनसे
ख़फ़ा-ख़फ़ा से रहते हैं
पर दिल की बात अपने दिल में ही
दबा के रखते हैं
है क्या सबब इस रंजिश का
यह कहा नहीं जाता
पर उनसे रूठकर भी उनके बिना
रहा नहीं जाता
नाराज़गी में उनके मनाने का
हम इंतज़ार करते हैं
कभी वे हमसे, कभी हम उनसे
ख़फ़ा-ख़फ़ा से रहते हैं
होगा ज़िन्दगी में आगे क्या
यह कौन है जानता ?
पर रहेगा साथ अपना हमेशा
ऐसा दिल है मानता
यूँ कल से पीठ घुमाए
हम बस आज में जीते हैं
कभी वे हमसे, कभी हम उनसे
ख़फ़ा-ख़फ़ा से रहते हैं
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