तसव्वुर कहीं हक़ीक़त न बन जाए
अब इस ख़याल से ही डर लगता है
करते हैं मोहब्बत बेइंतहाँ जिनसे
अब यह बात उनसे कहने से ही डर लगता है ।
यह दिल जिसे संभाला है हमने इतने दिनों बड़ी मुश्किल से
उन्हें देख कहीं यह कूदके उनके क़दमों पे न गिर जाए–
हैं घंटों बिता दिए हैं ख़यालों में जिनके हमने
अब तो उनके पास जाने से भी डर लगता है ।
तसव्वुर कहीं हक़ीक़त न बन जाए
अब तो इस ख़याल से ही डर लगता है ।
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