महबूब हमारे आजकल शमा से जला करते हैं
सैकड़ों परवाने जो उसकी आतिश में नीस्त-ओ-नाबूद हुआ करते हैं
सोचते हैं कि ऐसी क्या कशिश है कि शमा के नूर में
कि ये दीवाने जीने की बजाए ख़ाक होना पसंद किया करते हैं ।
महबूब की गली में भी आशिक़ लहू-लुहान घूमा करते हैं
उनके सीने में उनके दिल भी परवानों की तरह जला करते हैं
मसला तो महबूब को हमसे है कि उनके पास होकर भी हम
उनके इश्क़ में फ़ना होने से मना किया करते हैं ।