मैं हूँ वह ख़ुशी
जो प्रेमियों की आँखों से छलकती है
मैं हूँ वह आज़ादी
जो खुले आकाश में परिन्दो को मिलती है
मैं हू वह सुंदरता
जो रंग-बिरंगी कलियों में बसती है
मैं हूँ वह मोहब्बत
जो माँ अपने बच्चों से करती है
मैं हूँ वह शक्ति
जिससे सारी साँसें चलती हैं
मैं हूँ वह आत्मा
जिसमें यह कायनात बसती है–
है अगर कहीं वजूद में कोई
तो वह मैं ही तो हूँ कोई दूसरा नहीं
यह पूरी सृष्टि मुझसे ही शुरू होकर
मुझ पर आकर ख़त्म होती है ।
Nice poem
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Thanks!
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Absolutely true.i am searching for dis supernatural power….
.
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Well versed
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You write well.
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