एक अहसास है जो उभरता है
और उभरते ही खो जाता है
एक आवाज़ कहीं अंदर उठती है
और उठते ही ख़ामोश हो जाती है
क्या इसी तरह आत्मा पुकारती है ?
अपने होने का आभास कराती है ?
है ख़ामोश अब मेरा मन
पर आवाज़ें कहीं से आ रही हैं
है नहीं कोई गीत कोई धुन लब पर
पर दिल की धड़कनें संगीत बना रही हैं
है मुश्किल यह राह जिसपर चल पड़े हैं मेरे क़दम
है रास्ता लम्बा यह और साथ होकर भी अकेले हैं हम
है कोई कड़ी कहीं कि जिससे मैं जुड़ जाऊँ ?
है कोई ऐसा कि जिसके सहारे अपने अंदर झाँक पाऊँ ?
वह कड़ी कौन है, कहाँ है, कैसी है ?
क्या वह भी कहीं मेरा इंतज़ार कर रही है ?
ऐ मेरे साथ चलनेवाले मुसाफ़िरों
क्या तुमने कभी उस कड़ी को देखा है ?
वह जो अब उस पार पहुँच गया है ?
जिसके अंदर अब सिर्फ़ आत्मा का नाद गूँजता है ?
जो हम में है भी और नहीं भी
है सागर और लहर भी
है बाँसुरी और संगीत भी
है इंसान और ईश्वर भी
वह जो है हर जगह और सबसे क़रीब भी
वह जो है हर जगह और सबसे क़रीब भी
Fabulous 👍 👌
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Thanks!
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