रख देते आज हाल-ए-दिल खोलके हम अपना कि महबूब ने इन लबों पे हाथ रखके लफ़्ज़ों को रोक दिया...
Month: April 2018
गीता
हुई भोर और शंख बजे और ध्वज सबके लहराए, कुरुक्षेत्र में, धर्मयुद्ध में आर्यावर्त्त के शूर लड़ने आए ।
कम्बख़्त ग़म
है रूठी मेरी मोहब्बत मुझसे, मेरी रूह भी, मेरा ख़ुदा भी... बस ये कम्बख़्त ग़म ही हैं वफ़ादार, जो रूठने का नाम नहीं लेते ।
मोहब्बत
अगर न हो मोहब्बत आपकी रज़ा-ए-ख़ुदा में शामिल तो क्या कीजिए ?
पागल बना छोड़ा
अगर हमसे न करनी थी मोहब्बत तो ज़ालिम, हमसे यूँ मुलाक़ातें न की होतीं, कि तेरी नज़दीकियों ने हमें ग़ाफ़िल और दूरी ने पागल बना छोड़ा ।
तो फिर क्या बात थी
कहते हैं वो कि अब न रखेंगे हमसे कोइ राब्ता--पर अगर कहने पे मोहब्बत होती तो फिर क्या बात थी...