अगर इज़हार-ए-मोहब्बत में मुश्किल थी
तो यूँ हमसे आँखें न चार की होतीं
कि तेरी आँखों ने हमें आशिक़
और ख़ामोशी ने दीवाना बना छोड़ा…
अगर हमसे न करनी थी मोहब्बत तो ज़ालिम
हमसे यूँ मुलाक़ातें न की होतीं
कि तेरी नज़दीकियों ने हमें ग़ाफ़िल
और दूरी ने पागल बना छोड़ा ।
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