है रूठी मेरी मोहब्बत मुझसे
मेरी रूह भी, मेरा ख़ुदा भी,
बस ये कम्बख़्त ग़म ही हैं वफ़ादार
जो रूठने का नाम नहीं लेते ।
कुछ लम्हों की ख़ुशियों के लिए
न जाने कितने ग़म झेल गए
अब तो इत्तेफ़ाक हमें भी है राय-ए-माशरा से–
यह इश्क़ का चक्कर बस घाटे का सौदा है ।
Hello Nehaan
You write from heart like me
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