गीता

हुई भोर और शंख बजे और ध्वज सबके लहराए

कुरुक्षेत्र में, धर्मयुद्ध में आर्यावर्त्त के शूर लड़ने आए ।

पर अपने कुटुंब को देख बँटा एकाएक अर्जुन घबराए

युद्ध के परिणाम की सोच संशय के बादल घिर आए ।।

 

बोले, हे सखे, हे मधुसूदन, मेरा मन व्याकुल हो आया है

इस महासर्वनाश की कल्पना से ही मेरा दिल घबराया है ।

कैसी लीला है यह कि भाई भाई को मारने पे उतर आया है

झाँक चुका हूँ लाख दफ़ा पर अंदर लड़ने का साहस नहीं पाया है ।।

 

मारके अपने भाइयों को क्या चैन से जी सकूँगा मैं ?

मारके गुरु को और पितामह को घोर पाप करूँगा मैं ।

इस युद्ध के साथ ही मेरा पूरा कुल मिट्टी में मिल जाएगा

ऐसे में शासन करके भी मुझे कोई रस नहीं आएगा ।

 

है उचित यही कि शस्त्र फेंक मैं गेरुए वस्त्र धारण कर लूँ

छोड़के इस युद्धभूमि को मैं वन की तरफ़ ही रुख कर लूँ ।

मेरे हाथों अब यह घोर अधर्म नहीं हो पाएगा

जिसको लड़ना है लड़ ले, अब यह अर्जुन न लड़ पाएगा ।।

 

बोले कृष्ण, हे कौन्तेय, यह तेरे मन में कैसा संशय उठ आया है ?

जब है शत्रु युद्ध में सामने तो तुझे वन का रास्ता नज़र आया है ?

कहाँ था यह सन्यास तेरा जब जीवन-भर तूने उनसे वैर किया ?

कहाँ था यह कुल-प्रेम तेरा जब राजकाज के लिए ये सब खेल किया ?

 

अब जब है युद्ध सामने तो यह सन्यास का ढोंग तूने रचाया है,

सन्यास और धर्म की आड़ में तूने अपनी कायरता को छुपाया है ।

पर डर तुझे हारने का नहीं, एक अलग ही डर ने तुझे सताया है,

शत्रु और कुल के मरने से तुझे अपना अस्तित्व संकट में नज़र आया है ।।

 

पर हे गुड़ाकेश, तू जान ले कि यह युद्ध न अब टलनेवाला है

भागता है तो भाग जा, इससे अब कोई फ़र्क़ न पड़नेवाला है ।

इस युद्ध में तेरे कुल का अब सर्वनाश तो निश्चित ही होनेवाला है

एक अर्जुन के सन्यासी बनने से दूसरों का मन न बदलनेवाला है ।।

 

और सोच ज़रा तेरा मन आज रणभूमि में ही क्यों विचलाया है

होते देख सर्वनाश तेरा, तेरे मन ने ही यह उपाय सुझलाया है ।

आज क्या रणभूमि में शत्रु के साथ अर्जुन भी मारा जाएगा ?

क्या कुल के बिना, शत्रु के बिना, अर्जुन अर्जुन न रह जाएगा ?

 

देख ज़रा तू ध्यान से यहाँ, तू कौन है, कहाँ से आया है ?

कुल, राज्य और शत्रुता के अलावा क्या अंदर तूने अपने कुछ पाया है ?

सुन ले अर्जुन आज वह सत्य जो तुझको इस युद्ध में जितलाएगा

न यह कुल तेरा, न यह लोग तेरे, न इनका संहार तेरे हाथों होने पाएगा ।।

 

जो है जीवन का स्रोत वहाँ से मैं तेरे लिए यह ज्ञान लेकर आया हूँ

है आधार जो इस जीवन का उस आत्मा की बात कहने आया हूँ ।

तुझमें, मुझमें, हम सब में एक शाश्वत आत्मा बसती है

वह न कभी पैदा होती है और न ही कभी वह मरती है  ।।

 

वस्त्रों जैसे ही यह आत्मा मरने पर शरीर बदलती है

जीवन की यह ऊर्जा कभी रुकती नहीं सदा ही बहती है ।

फिर क्या यह शरीर, क्या ये लोग, यह सब तो बस माया है

असली सत्य, असली अस्तित्व तो बस आत्मा ने ही पाया है ।।

 

तू मारना चाहे तो भी अर्जुन आत्मा को तू न मार पाएगा

मरते ही तेरे शत्रु का पुनर्जन्म हो जाएगा ।

ऐसे में हे सखे, यह जो सन्यास की आज तूने ठानी है

यह बस अज्ञान है तेरा, इसमें तेरी ही हानि है ।।

 

आज अगर तू अपनी इस कृत्रिम दुनिया को बचा ले जाएगा

तो फिर कभी अपनी आत्मा से मिलने का मौक़ा न पाएगा ।

आज अगर तू शाश्वत को नश्वर के लिए ठुकराएगा

तो बोल मूढ़ तुझे सन्यास में भी ज्ञान कहाँ से आएगा ।।

 

और देख अपनी आँख खोलके तू युद्ध भूमि की ओर ज़रा

आ चुकी है अब घड़ी युद्ध की, हो चुका है शंख-नाद यहाँ

ऐसे में बता अर्जुन — क्या है अब इस युद्ध के टलने की आस कोई ?

ऐसे में बता अर्जुन — क्या है तेरी दुनिया के बचने की आस कोई ?

 

तो अब तू सन्यास पर जाकर भी क्या हासिल कर पाएगा ?

तेरे शत्रु या तेरे बंधु, किसी न किसी का काल तो आएगा ।

अब डरने से, झिझकने से तो कुछ न तेरे हाथ आएगा

अगर भाग गया रणभूमि से तो ऊपर से कायर और कहलाएगा । ।

 

देख अर्जुन अब जो होना है तू कर ले बस स्वीकार उसे

बन जा होनी के बाजू न कर अब धिक्कार उसे ।

तू अगर लड़ेगा इस युद्ध में तो मुझे तू अपने संग पाएगा

यह तेरा किया नहीं होगा तू बस साधन कहलाएगा ।।

 

अब सन्यास नहीं है मार्ग तेरा, तू आज मेरी शरण में आ जा

मैं बनता हूँ कर्ता और तू मेरा निमित्त-मात्र बन जा ।

है मेरी ही सब माया यह, जो कभी सृजन करे कभी नाश

तो आज तू बस मेरी इस लीला का एक हिस्सा बन जा ।।

 

अंत में तू भी देखेगा कि जिस अधर्म के विचार ने तुझे सताया था

वह कुछ और नहीं बल्कि तेरे अहंकार ने नया पैंतरा आज़माया था ।

जब नहीं था ज्ञान आत्मा का तो यह संसार ही था सब कुछ तेरा

इस संसार को ही बचाने ले लिए तुझे सन्यास में धर्म नज़र आया था ।।

 

जब नष्ट होगा तेरे कुल के साथ तेरा अहंकार इस युद्ध में यहाँ

तब होगा ज्ञान का उदय तुझे, तब पूरा होगा तेरा योग यहाँ ।

तब तू यह पाएगा कि आत्मज्ञान से नहीं बड़ा कोई धर्म यहाँ

तब तू यह पाएगा कि आत्मा में ही है असली अस्तित्व तेरा ।।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 



6 responses to “गीता”

  1. Hats offf to you Neha 🙂

    This is amazing …….you penned it fantastically ❤
    Loved to read you

    Liked by 1 person

    1. Thanks! Glad you liked it!

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  2. बहुत सुंदर

    Liked by 1 person

    1. शुक्रिया !

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  3. You write so well in both languages…amazing talent

    Liked by 1 person

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About Me

Nehaan in Persian means ‘secret’ or ‘hidden.’ In Japanese, the same word means ‘nirvana.’ In these pages, I will make an attempt to explore, and if possible, partly or fully reveal what lies hidden from our view in our day-to-day lives. The path will be characterised by a certain lack of method which I think is characteristic of human intuition. I write and shall continue to write only when inspired to do so. This also means I might occasionally make forays into varied fields such as science, music, philosophy, language, linguistics and poetry, to name a few. I hope this would not put off new readers and tire the old ones! But who am I to complain–even the lovers of fine wine feel repulsed by the first drop and still, quite strangely, dizzy by the last.

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