जब रखा सीने पर हाथ उन्होंने
तो रूह हमारी जैसे सिहर सी उठी
जब उतरा गिरेबान सिर से मेरे
तो सूखे ज़ख़्मों की परत जैसे उखड़ सी गई
देखा यह जो हाल हमारा उन्होंने
कि पूरा बदन ज़ख़्म-ए-नासूर से जैसे लैस था
उनके मुँह से मारे हैरत के अचानक
या ख़ुदा की आवाज़ गूँज उठी
अब तो हालत यह है कि
वे फूँकें भी तो दर्द होता है
कल जब निकली बात ज़ख़्मों की फिर से
तो उनकी आँखें हमें देख भर सी गईं
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