जब भी अन्तःकरण में
एक कविता जन्म लेती है
आकर चुपके से वो मेरे
कानों में कुछ कहती है
और होकर शांत जब मैं
उसकी बातें सुनता हूँ
क्या वो मैं हूँ जो उसको रचता है ?
या वो अपने आप को मुझसे गढ़ती है ?
जब भी अन्तःकरण में
एक कविता जन्म लेती है
आकर चुपके से वो मेरे
कानों में कुछ कहती है
और होकर शांत जब मैं
उसकी बातें सुनता हूँ
क्या वो मैं हूँ जो उसको रचता है ?
या वो अपने आप को मुझसे गढ़ती है ?
👌
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Kya baat…….wo pad nahi bante jismen wo nahi rahte.
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