लगता नहीं ग़म से डर डर इस बात से लगता है कहीं खा-खाकर ठोकरें यह दिल पत्थर का ही न बन जाए देखो इस चमन में यारों हैं गुल भी कई बुलबुल भी कई पर कशिश अब इश्क़ में नहीं इतनी कि वस्ल-ए-गुम-ओ-बुलबुल हो पाए आज गोश-ए-गुल नाला-ए-बुलबुल के लिए तरस गए आज… Continue reading लगता नहीं ग़म से डर
Category: Love Poetry
हुमा
गुज़र चुके हैं पहले भी आतिश-ए-इश्क़ से कई बार मगर लगता है हमको भी हुमा, जलकार ज़िन्दा होने की कला आ गई अगर मयख़ाने से पूछे कोई तो कहेगा वह भी यह-- नशा शराब का नहीं उसकी कैफ़ियत का होता है अब तो इश्क़ का भी दस्तूर है यह, माशूक तो बस बहाना है… Continue reading हुमा
रोक दिया
रख देते आज हाल-ए-दिल खोलके हम अपना कि महबूब ने इन लबों पे हाथ रखके लफ़्ज़ों को रोक दिया...
कम्बख़्त ग़म
है रूठी मेरी मोहब्बत मुझसे, मेरी रूह भी, मेरा ख़ुदा भी... बस ये कम्बख़्त ग़म ही हैं वफ़ादार, जो रूठने का नाम नहीं लेते ।
मोहब्बत
अगर न हो मोहब्बत आपकी रज़ा-ए-ख़ुदा में शामिल तो क्या कीजिए ?
पागल बना छोड़ा
अगर हमसे न करनी थी मोहब्बत तो ज़ालिम, हमसे यूँ मुलाक़ातें न की होतीं, कि तेरी नज़दीकियों ने हमें ग़ाफ़िल और दूरी ने पागल बना छोड़ा ।
तो फिर क्या बात थी
कहते हैं वो कि अब न रखेंगे हमसे कोइ राब्ता--पर अगर कहने पे मोहब्बत होती तो फिर क्या बात थी...
मैं इस खोज में हूँ
आदि से अंत तक, इस चलायमान संसार में, जो स्थिर है वह क्या है? मैं इस खोज में हूँ...
नाइंसाफ़ी यह
आपसे मिलने के इंतज़ार में यूँ तड़प रहा है हमारा दिल कि गोया आपके हिस्से का दर्द भी हमें हो रहा है...
जवाब-ए-शिकवा
कहते हैं सब मुझे बेहिस-ओ-बेरहम, मग़रूर हूँ मैं यह है उनका वहम...