घने बादलों की चादर ओढ़े
बारिश के इंतज़ार में डूबे
इन पेड़ों को देखो, महसूस करो
इनका रोयाँ-रोयाँ आज आनंदित है–
आज वर्षा के चुंबन का दिन है
आज संपूर्णता से मिलन का दिन है ।
है पत्ता-पत्ता रहा तड़प
टलेगी यह विरह की घड़ी कब
है टहनियाँ पुकारती चींखती
वर्षा को अपनी ओर खींचती
बादलों से यह प्रकृति है बोलती
बूँदें क्यों ये तुम्हारी हैं आँख-मिचोली खेलतीं ?
बोलो कब तक तड़पाओगे ?
कब अपना पानी मुझ पर बरसाओगे ?
हे मेघ देवता मैं हूँ प्यासी
कब तुम मेरी प्यास बुझाओगे ?
सुना है न तुमने, यह बारिश का दिन
है अपने मिलन का दिन
तो तुम कब मिलने आओगे ?
अत्यंत प्रेम भाव से लिखी हुई कविता ,, बहुत प्यारी व प्रशंसनीय ❤❤❤
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